बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)
प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा
दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'श्रम विभाजन' की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
अथवा
दुर्खीम के श्रम विभाजन के सिद्धान्त की मुख्य सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
दुर्खीम की सर्वप्रथम पुस्तक 'दि डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी' जोकि 1893 में प्रकाशित में श्रम विभाजन का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। श्रम विभाजन से अभिप्राय कार्यों (भूमिकाओं) का वितरण है। जैसे-जैसे श्रम विभाजन बढ़ता जाता है कार्यों में विशेषीकरण आता जाता है। दुर्खीम का कहना है कि श्रम विभाजन का अभिप्राय केवल भूमिकाओं में विभिन्नीकरण तथा विशेषीकरण नहीं है अपितु इन भूमिकाओं में समन्वय भी है। प्राचीन समाजों में श्रम विभाजन न के बराबर था तथा लोगों में केवल लिंग के आधार पर ही थोड़ा बहुत अन्तर पाया जाता था परन्तु अधिक विशेषीकरण नहीं था इसलिये प्राचीन सभाओं में सामाजिक एकता का आधार समानता था। परन्तु जैसे-जैसे समाज में जटिलता आती जाती है तथा समाज परम्परा से आधुनिकता की ओर बढ़ता जाता है तथा इस विशेषीकरण के कारण समाज के व्यक्ति एक- दूसरे पर आश्रित होते जाते हैं। इस प्रकार समाज में रहने वाले व्यक्तियों में अन्योन्याश्रितता बढ़ती जाती है। इस लेए आधुनिक समाजों में सामाजिक एकता का प्रमुख आधार श्रम विभाजन (अर्थात् विशेषीकरण तथा अन्योन्याश्रितता) है। दुर्खीम ने इन दोनों प्रकार की संश्लिष्टता अथवा एकता के लिये क्रमशः यांत्रिक एकता तथा सावयाविक एकता शब्दों का प्रयोग किया है।
श्रम-विभाजन का कार्य सभ्यता का निर्माण करना नहीं है अपितु इसका कार्य मुख्यतः समूहों तथा व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधकर समाज में एकता लाना है तथा समूहों और व्यक्तियों में यह एकता श्रम- विभाजन के बिना नहीं आ सकती। दुर्खीम सामाजिक एकता के दो प्रकार बताते हैं यांत्रिक एकता तथा सावयाविक एकता। प्राचीन सभाओं में श्रम विभाजन न के बराबर है तथा केवल लिंग व आयु के आधार पर थोड़ा बहुत श्रम विभाजन देखा जा सकता है। इस प्रकार के समाजों में पाई जाने वाली एकता को दुर्खीम यांत्रिक एकता की संज्ञा देते हैं। आधुनिक समाजों में कार्यों का वितरण तथा विशेषीकरण पाया जाता है। इस विभिन्नीकरण तथा विशेषीकरण के कारण समाज की विभिन्न इकाइयों में अन्तः सम्बन्ध और अन्तः निर्भरता अत्यधिक बढ़ जाती है। इन कार्यों में समन्वय होने के कारण सावयाविक एकता आती है। अतः श्रम-विभाजन समाज की एक अत्यन्त अनिवार्य आवश्यकता को पूरा करता है अर्थात् समाज में एकता लाने में सहायता देता है।
श्रम विभाजन के उद्देश्य
1. श्रम विभाजन के कार्यों को निर्धारित करना अर्थात् यह पता लगाना कि श्रम विभाजन द्वारा कौन-सी सामाजिक आवश्यकता पूरी होती है।
2. उन कारणों तथा दशाओं का पता लगाना जिस पर श्रम विभाजन आश्रित है।
3. श्रम विभाजन के प्रमुख असामान्य प्रकारों का पता लगाना।
श्रम विभाजन के असामान्य प्रारूप
1. विशृंखला श्रम विभाजन - इसमें समाज की विभिन्न इकाइयों में सामंजस्य समाप्त हो जाता है। दुर्खीम का कहना है कि मानव शरीर की तरह समाज की भी अनेक इकाइयाँ हैं जो अपना कार्य करती हैं तथा पारस्परिक सामंजस्य बनाये रखती हैं जिससे सामान्य सामाजिक चेतना तथा सावयाविक एकता का उदय होता है। परन्तु कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति पारस्परिक सन्तुलन खो देते हैं तथा उनकी स्थिति अनिश्चित हो जाती है। अगर व्यक्ति अपने कार्य नहीं करते तथा कार्यों में समन्वय नहीं रहता तो इस अवस्था को विश्रृंखला श्रम विभाजन की अवस्था कहा जाता है।
2. आरोपित श्रम विभाजन - आरोपित श्रम विभाजन का उदाहरण वर्ग संघर्ष है तथा इसकी उत्पत्ति व्यक्ति की उनके प्रकार्य से समन्वय न होने की दशा द्वारा होती है। आरोपित श्रम विभाजन में वास्तव में व्यक्ति की योग्यता, क्षमता तथा रुचि और समाज द्वारा सौंपे गये कार्य में सामंजस्य नहीं रहता।
3. एक अन्य असामान्य प्रारूप - जब प्रत्येक कर्ता की प्रकार्यात्मक भूमिका अपर्याप्त होती है तो श्रम विभाजन सामाजिक एकता नहीं ला पाता। सामाजिक सम्बन्धों में एकता तथा निरंतरता रखने के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी भूमिका पर्याप्त मात्रा में निभाता रहे। परन्तु जब व्यक्ति अपनी प्रकार्यात्मक भूमिकायें पर्याप्त मात्रा में नहीं निभाते तो सामाजिक सम्बन्धों में शिथिलता आ जाती है तथा श्रम विभाजन अपनी प्रमुख भूमिका अर्थात् सामाजिक एकता लाना छोड़ देता है।
आलोचना
दुर्खीम श्रम विभाजन के केवल सामाजिक पक्ष की ओर अधिक ध्यान देता है तथा इसका कारण जनसंख्या में घनत्व तथा आयतन में वृद्धि मानता है। इसका कार्य समाज में सामाजिक संश्लिष्टता लाना है तथा यह संश्लिष्टता श्रम विभाजन के कारण व्यक्तियों की एक-दूसरे पर आश्रितता द्वारा आती है। परन्तु श्रम विभाजन के इतने अधिक विकास के कारण भी आधुनिक समाजों के व्यक्तियों में संतोष नहीं है। आदिम समाजों में लोग अधिक सुखी थे जबकि उनमें श्रम विभाजन नहीं था। साथ ही दुर्खीम समरूपता से श्रम- विभाजन अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है। उन समाजों और आधुनिक समाजों, जिसमें श्रम विभाजन चरम सीमा पर पहुँच चुका है क्या अन्तर है तथा श्रम विभाजन के विभिन्न स्तर किस प्रकार सामाजिक संश्लिष्टता को प्रभावित करते हैं? इस बारे में दुर्खीम का सिद्धान्त कोई प्रकाश नहीं डालता। इन आलोचनाओं के बावजूद दुर्खीम का सिद्धान्त समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
- प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
- प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
- प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
- प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
- प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
- प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
- प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
- प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
- प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
- प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
- प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
- प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
- प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
- प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
- प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
- प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
- प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
- प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
- प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
- प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
- प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
- प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
- प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
- प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।